Giridih News: श्रद्धालु विभिन्न राज्यों से चादर पोशी करने आते हैं यहां, जाने कितनी शक्ति है यहाँ के भक्ति में?
Giridih:- लंगटा बाबा की समाधि, जो गिरिडीह के जमुआ प्रखंड मुख्यालय से सात किमी. दूर देवघर मुख्यमार्ग के किनारे खरगडीहा में स्थित है, सभी धर्मों के लोगों को बहुत श्रद्धा है।
यही कारण है कि हिन्दू, मुस्लिम, सिख और ईसाई हर दिन यहां आकर माथा टेकते हैं। यहां हर साल पौष पूर्णिमा के दिन भक्ति और आस्था का जनसैलाब उमड़ता है। श्रद्धालु विभिन्न राज्यों से चादर पोशी करने यहां आते हैं।
1910 में कालजयी संत लंगेटश्वरी बाबा, जिसे लंगटा बाबा भी कहा जाता था, महासमाधि में शामिल हुए। बाबा के भक्तों की संख्या तब से बहुत बढ़ी है। माना जाता है कि लंगटा बाबा ने 1870 के दशक में नागा साधुओं की एक टोली के साथ खरगडीहा आगमन किया था। उस समय परगना हुआ करता था।
कुछ दिनों के बाद नागा साधुओं की एक टुकड़ी अपने लक्ष्य की ओर रवाना हो गई, लेकिन एक साधु थाना में ही धुनी रमाये बैठा रहा। यही साधु लंगटा बाबा बाद में अपने चमत्कारिक गुणों के कारण विख्यात हुआ। बाबा की अद्भुत शक्ति के बारे में कहा जाता है कि एक दिन उनके पास एक कुत्ता आया, जिसका शरीर जख्मों से भर गया था।
शरीर से मवाद बहते देखा तो उन्होंने कुछ उसके पास फेंका और कहा, महाराज, तें भी खाले। इसके बाद कुत्ता स्वस्थ हो गया। लंगेटश्वरी बाबा ने पीड़ित मानवता के लिए ही नहीं बल्कि सभी जीवों के लिए दया की मूर्ति थी। उस समय, खरगडीहा में भयंकर प्लेग रोग था।
लोग अपने घरों से भागने लगे। बाबा के कर्मचारी भी भागने के लिए तैयार थे। तभी उन्होंने कहा कि दवाएं घर में भरी हुई हैं। इसके बाद इलाके में प्लेग रोग नहीं हुआ। माना जाता है कि श्रद्धालुओं से भोजन और अन्य उपहार स्वीकार करने के तरीके भी नायाब थे। महाराज ने कहा कि उसे ठंढी करो और उसे एक कुएं में फेंक दो। आज भी समाधि क्षेत्र में वह कुआं है।
1910 में पौष पूर्णिमा के दिन, जीव आत्माओं की साधना करने वाले संत लंगटा बाबा ने अपना भौतिक शरीर छोड़ दिया। उस समय क्षेत्र के मुसलमान और हिंदू लोगों को लगता था कि उनका सब कुछ लुट गया है। दोनों समुदायों में बाबा के शरीर के अंतिम संस्कार को लेकर भी विवाद हुआ।
बताते हैं कि क्षेत्र के बुद्धिमान लोगों ने विचार-विमर्श के बाद दोनों धर्मों का अंतिम संस्कार किया था। इसके बाद से यहां हर साल पौष पूर्णिमा पर मेला लगता है। मेला में उमड़ने वाली जनता को देखकर सहज ही लगता है कि पीड़ित मानवता की रक्षा करने वाले संत आज भी लोगों के दिलों में हैं।