Bokaro

Bokaro News: होलिका दहन में होली के विशेष बातो की हुई चर्चा

Bokaro: बोकारो में होली को लेकर किया गया होलिका दहन। होलिका दहन कार्यक्रम के दौरान इसकी विशेषता के बारे में बताया गया। यह मुख्य रूप से मार्च में पूर्णिमा के दिन आयोजित किया जाता है और वसंत के आगमन का जश्न मनाया जाता है। होली को “रंगों का त्योहार” भी कहा जाता है और यह रंगीन पाउडर और पानी के उपयोग के लिए दुनिया भर में जाना जाता है। इसकी विशेषता यह है कि प्रतिभागी “गुलाल” नामक रंगों से खेलते हैं और “हैप्पी होली” कहते हुए एक-दूसरे पर पानी छिड़कते हैं।

होलिका दहन के अगले दिन ही होली मनाई जाती है। हिंदू पौराणिक कथाओं और परंपरा में होली का इतिहास व्यापक है। कुल मिलाकर, होली से जुड़ी सबसे लोकप्रिय कहानियाँ होलिका और प्रह्लाद की हैं। हिंदू पौराणिक कथाओं की होलिका और प्रह्लाद की कहानी होली अलाव या होलिका दहन पर आधारित है।इस कहानी में एक राक्षस राजा था जिसका नाम हिरण्यकशिपु था। दैत्यों के राजा को ब्रह्मा ने वरदान दिया।

होलिका दहन के अगले दिन ही होली मनाई जाती है
होलिका दहन के अगले दिन ही होली मनाई जाती है

उनका दावा है कि उनकी अमरता का वरदान यह है कि वे दिन या रात में नहीं मरेंगे। उसे न मनुष्य न ही जानवर मार सकेंगे। यह वरदान मिलने पर हिरण्यकश्यप बहुत खुश हो गया और सभी से उसे भगवान के रूप में पूजने की मांग की। लेकिन उसके प्रह्लाद इसी राक्षस राजा के घर पैदा हुआ था। वह अपने पिता के बजाय भगवान विंशु को समर्पित थे। राजा हिरण्यकश्यप को उसकी भगवान कृष्ण की भक्ति अप्रिय लगी। हिरण्यकश्यप ने कई बार उसे मरवाने की कोशिश की। प्रह्लाद फिर भी बच गया। अंततः प्रह्लाद को हिरण्यकश्यप ने डिकोली पहाड़ से नीचे फेंक दिया।

डिकोली पर्वत, जहां प्रह्लाद गिरे थे, आज भी है। श्रीमद्भागवत पुराण का 9वां स्कंध और झाँसी गजेटियर के पृष्ठ 339ए, 357 में इसका उल्लेख मिलता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, हिरण्यकशिपु ने अपने बेटे को दंडित करने के लिए आग से बचने वाली अपनी बहन होलिका से मदद मांगी। वह आग के बीच बैठने के लिए एक चुनरी पहन सकती हैं। जिसे ढकने से आग नहीं लगती। प्रह्लाद को जिंदा जलाने की होलिका और हिरण्यकश्यप ने योजना बनाई।

प्रह्लाद की कहानी होली अलाव या होलिका दहन पर आधारित है
प्रह्लाद की कहानी होली अलाव या होलिका दहन पर आधारित है

होलिका ने प्रह्लाद को धोखे से आग में बैठाया। लेकिन भगवान विष्णु ने प्रह्लाद को बचाया और होलिका को उस आग से बचाया। जब होलिका प्रह्लाद को वही चुनरी ओढ़कर गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई, तो भगवान की कृपा से हवा चली और चुनरी होलिका से उड़कर प्रह्लाद पर गिरी। फिर प्रह्लाद बच गया, और होलिका जल गई।

तुरंत बाद भगवान विष्णु ने नरसिम्हा का अवतार लिया और हिरण्यकश्यप को गौधुली बेला (दिन और रात) में दिकौली मंदिर की दहलीज पर अपने नाखूनों से मार डाला। पूरे देश में होली से एक दिन पहले होलिका दहन की परंपरा है। पूरी कहानी बुराई पर अच्छाई का विजेता है। इसलिए होलिका दहन होली से एक दिन पहले मनाया जाता है। होलिका वाहन पर नकारात्मकता जलती है।

Also read : 27 मार्च तक मतदान केंद्रों पर आवश्यक सुविधाओं की कमी को दूर करेंगे भारत निर्वाचन आयोग

Also read :  होली को लेकर कोडरमा पुलिस अलर्ट पर, हुड़दंगाई करने वालों को मिलेगा स्पेशल होली ट्रीटमेंट

Sahil Kumar

हेल्लो, मेरा नाम शाहिल कुमार है और मैं झारखंड के धनबाद जिले का रहने वाला हूँ। मैंने हिंदी ओनर्स में ग्राटुअशन किया हुवा है और Joharupdates में पिछले 3 महीनो से लेखक के रूप में काम कर रहा हूँ। मैं धनबाद सहित आस-पास के जिलों में होने वाली घटनाओ पर न्यूज़ लिखता हूँ और उन्हें लोगो के साथ साझा करता हूँ। आप मुझसे मेरे ईमेल 'shahilkumar69204@gmail.com' पर कांटेक्ट कर सकते है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button