झारखंड में राजद की ‘खोई प्रतिष्ठा’ को फिर से पाने के लिए लालू यादव देवघर से बड़ा संदेश देने की तैयारी कर रहे हैं…
झारखंड में राजद: ‘खोई प्रतिष्ठा’ को फिर से पाने के लिए लालू यादव Lalu Yadav in Deoghar, राष्ट्रीय राजनीति में लालू प्रसाद यादव और उनकी पत्नी राबड़ी देवी, बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री, एक बार फिर केंद्र में हैं।
सालों बाद लालू यादव और उनकी पत्नी बाबा बैधनाथ की धरती पर पहुंचे हैं। सोमवार को उन्होंने बाबा बैद्यनाथ की पूजा की जाएगी। बाद में वह फौजदारी न्यायालय में भी हाजिरी लगाएंगे।
दुमका: राष्ट्रीय राजनीति में एक बार फिर से राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव (Lalu Yadav) की चर्चा हो रही है, क्योंकि वे राजनीतिक दौड़ में विजेता बनने में माहिर हैं। लालू यादव और बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने मुंबई में आईएनडीआईए की बैठक के बाद देवघर की धरती पर कदम रखा है।
सोमवार को बाबा बैद्यनाथ की पूजा के बाद वह भी फौजदारी दरबार में हाजिरी लगाएंगे। रविवार को देवघर एयरपोर्ट पर लालू प्रसाद को राजद के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने आगवानी की है, जो आने वाले दिनों में झारखंड की राजनीतिक जमीन पर उठा-पटक का सीधा संकेत है।
लालू प्रसाद यादव को पता है कि राजद कभी झारखंड में शासन करता था।
इस क्षेत्र से 14 विधायक अखंड बिहार में और फिर वर्ष 2000 में अलग झारखंड राज्य बनने पर राजद के नौ विधायक हुआ करते थे। राजद केवल पलामू, चतरा और कोडरमा लोकसभा सीटों पर दबदबा था।
2005 में, राज्य के गठन के बाद पहली बार विधानसभा का चुनाव हुआ, राजद ने सात विधायक जीते, जिसमें मोदी सरकार में अभी केंद्रीय मंत्री अन्नपूर्णा देवी भी शामिल थीं।
इन राजद विधायकों ने 2005 में जीत हासिल की थी
2005 में चुनाव जीतने वाले राजद विधायकों (RJD MLA) में गिरिनाथ सिंह, रामचंद्र चंद्रवंशी, रामचंद्र सिंह, प्रकाश राम, उदयशंकर सिंह और बलदेव हाजरा शामिल थे। देवघर, गोड्डा और सारठ से संताल परगना में राजद के विधायक रहे हैं।
संजय प्रसाद यादव दो बार गोड्डा से विधायक बने, जबकि सुरेश पासवान देवघर से विधायक और हेमंत सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे। इसके अलावा, उदयशंकर सिंह, जिन्हें चुन्ना सिंह सारठ भी कहा जाता था, विधायक चुने गए।
वर्तमान में संताल परगना में राजद के नेता संजय प्रसाद यादव और सुरेश पासवान हैं, जिस पर पार्टी अभी भी दांव खेलती है।
2009 के झारखंड चुनाव में राजद के सिर्फ पांच विधायक चुने गए थे। 2014 में झारखंड विधानसभा चुनाव में ही राजद का सूपड़ा साफ हो गया था।
यही नहीं, झारखंड में राजद के कई महत्वपूर्ण नेता भी पार्टी से अलग हो गए थे। 2019 में, वह एक सीट पर राजद चुनाव जीत पाया। राजद के विधायक सत्यानंद भोक्ता हेमंत वर्तमान में कैबिनेट में मंत्री हैं।
अब जब देश भर में मिशन 2024 के लिए भारत बनाम इंडिया की बहस चल रही है, लालू प्रसाद यादव भी झारखंड में आईएनडीआईए के बहाने राजद (RJD) की पुनर्वापसी चाहते हैं।
वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों के कारण लालू प्रसाद यादव झारखंड में एनडीए (NDA) को हराने का प्रयास कर रहे हैं। झारखंड में नीतीश कुमार की पार्टी जदयू, जो पहले एनडीए के साथ थी, अब आईएनडीआईए के साथ है।
JDU ने कभी कुर्मी मतदाताओं पर दबदबा किया था और झारखंड में उसके पांच विधायक थे। जदयू के खीरू महतो फिलहाल झारखंड से राज्यसभा सांसद हैं। अब जदयू भी यहां अपनी पुरानी राजनीतिक जगह खोजने की कोशिश कर रहा है।
लालू प्रसाद यादव, जो झारखंड में एनडीए की 14 सीटों में से 12 पर कब्जा कर रहे हैं, बिहार की तरह झामुमो, कांग्रेस, राजद, जदयू और वाम दलों को एक सूत्र में एकत्र करने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि भाजपा और आजसू को सीधे चुनौती दी जा सके।
लालू जानते हैं कि झारखंड में लोकसभा की 14 सीटों में से 12 पर एनडीए का कब्जा है।
झामुमो और कांग्रेस दोनों को एक सीट मिली है। लालू इसलिए चतरा-पलामू सहित सभी परंपरागत सीटों पर केंद्रित है, जहां सेम विचारधारा का ध्रुवीकरण हो सकता है। मुस्लिम-यादवों के वोटों के अलावा घटक दलों के वोटों की शक्ति से भाजपा-आजसू को हराया जा सकता है।
लालू प्रसाद यादव भी संताल परगना में आईनडीआईए (INDIA) की सीटों को बढ़ाना चाहते हैं।
लालू प्रसाद यादव का क्रेज कार्यकर्ताओं में जारी है, भले ही झारखंड में राजद की संख्या बल कम है, लेकिन उनके सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव का क्रेज नेताओं और कार्यकर्ताओं पर भारी पड़ा है।
जब सूरज मंडल ने 25 अगस्त को दुमका के इंडोर स्टेडियम में पिछड़ा वर्ग संघर्ष मोर्चा के सेमिनार में लालू प्रसाद यादव के खिलाफ बोला, तो मौके पर मौजूद राजदों और यादव समाज के लोगों ने हत्थे से उखड़कर इसका विरोध करते हुए कुर्सियों और पोडियम तक चटका दिया।