Bokaro News: प्रशिक्षण लेने के बाद कांड्रा पंचायत की महिलाएं करती हैं मड़वा की खेती
Bokaro: महिलाओं ने बताया कि आज हमारे द्वारा की गई मड़वा की खेती से प्रेरित होकर हमारे गांव और आसपास के लोग भी मड़वा की खेती करने के लिए उत्सुक हैं। आसपास के लोग जानकारी लेने के लिए समूह में आते रहते हैं। हम भी इस वर्ष बड़े पैमाने पर मड़वा की खेती करने के लिए तैयार हैं।
लोगों को सदियों से अभाव में खाया जानेवाला मोटा अनाज अब औषधि बन गया है। सरकार ने भी स्कूलों को हर सप्ताह एक दिन मोटा अनाज देने का आदेश दिया है। झारखंड सरकार के सभी सरकारी विद्यालयों में प्रत्येक सप्ताह एक दिन मड़वा के लड्डू बनाए जाते हैं। कांड्रा पंचायत की एक महिला समूह ने करीब एक वर्ष पहले प्रशिक्षण से प्रेरित होकर की मड़वा की खेती शुरू की।
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प्रशिक्षण के दौरान चास प्रखंड के कांड्रा पंचायत के रामडीह गांव की एकता आजीविका महिला सखी मंडल की रोशनी कुमारी, मालावती कुमारी, लक्ष्मी कुमारी, शीला कुमारी, छवि कुमारी, यशोदा कुमारी, रीना कुमारी, लीलावती कुमारी, पार्वती कुमारी, फूलन कुमारी, रेखा कुमारी, रेवती कुमारी, प्रमिला कुमारी, बिंदेश्वरी कुमारी, सीता कुमारी ने बताया कि फिर परिवार के साथ मिलकर मड़वा खेती शुरू की।
जेएसएलपीएल ने उनके लिए बीज भी प्रदान किया। महिलाओं द्वारा कड़ी मेहनत से बीज को पौधा में बदलने के बाद यह बाड़ी में बोया गया। मडवा खेती में महिलाओं ने सफलता हासिल की। एक क्विंटल 35 किलो मड़वा की खेती ने दिखाया कि धान गेहूं सहित अन्य फसलों की तरह मड़वा भी खेती जा सकती है।
महिलाओं ने बताया कि आज हमारे द्वारा की गई मड़वा की खेती से प्रेरित होकर हमारे गांव सहित आसपास के लोग भी मड़वा की खेती करने के लिए उत्सुक हैं। आसपास के लोग जानकारी लेने के लिए समूह में आते रहते हैं। हम भी इस वर्ष बड़े पैमाने पर मड़वा की खेती करने के लिए तैयार हैं।
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हम लोगों द्वारा गरीबी के दौरान खाया गया अनाज (मड़वा, मकई की लपसी, ज्वार) आज के लोगों के लिए औषधि साबित हो रहा है, क्षेत्र के बुजुर्गों का कहना है। 70-80 साल पहले, इतने बीमार लोग नहीं थे। इसका एकमात्र कारण यह है कि लोगों को समय की कमी के कारण मोटा अनाज खाना पड़ा. उस समय लोग मड़वा, मकई की लपसी और ज्वार खाते थे।