Khunti News: जाने क्या सच में ईसाई वोट से चुनाव में बदल जाती है पार्टिया
Khunti: खूंटी ने देश को कई बड़े-बड़े नेता दिया है। जिनमे अर्जुन मुंडा, सिंह मुंडा, एनइ होरो, मरांग गोमके जयपाल, कड़िया मुंडा जैसे नेता शामिल है। खूंटी झारखण्ड की राजनीती के लिए एक बड़ा चेहरा भी है। खूंटी में ईसाई के वोटर का बड़ा प्रभाव भी है।
1962 और 1967 में यहां से दो बार जयपाल सिंह मुंडा विजयी हुए। इसके बाद निरल एनम होरो ने 1971 और 1980 में दो बार जीत हासिल की और राज किया । 1985 के चुनाव में कांग्रेस ने साइमन तिग्गा को इस सीट से उम्मीदवार बनाया। 1977 में कड़िया मुंडा खूंटी संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़े
लेकिन 60 से 80 के दशक तक ईसाई जनप्रतिनिधियों का ही दबदबा रहा है। कड़िया मुंडा ने 1989 से 1999 तक BJP से लगातार जीत हासिल की। वह सात बार खूंटी से सांसद चुने गए। 2004 में सुशीला केरकेट्टा ने कांग्रेस से आखिरी बार चुनाव जीता। 20 साल बाद किसी ईसाई नेता ने चुनाव जीता था।
खूंटी में ईसाई में से किसी नेता को उम्मीदवार बनाने के लिए आवाज उठाई जा रही थी
खूंटी सीट से ईसाई उम्मीदवार की आवाज लगातार उठाई जा रही है । खूंटी से झारखंड आंदोलन में भाग लेने वाले प्रभाकर तिर्की भी कांग्रेस में शामिल होना चाहते थे। लेकिन देर रात कांग्रेस ने कालीचरण मुंडाका नाम खूंटी से प्रत्याशी बनाने के घोषित कर दिया । लेकिन श्री तिर्की के साथ पूर्व झारखंडियों ने दबाव डाला था।
हाल ही में कांग्रेस ने सामाजिक कार्यकर्ता दयामनी बरला को अपनी पार्टी में शामिल किया है। दयामनी बरला ने झारखंड की जनता के सवालों को हमेशा उठाया है। कांग्रेस इस इलाके में दयामनी बरला के माध्यम से ईसाइयों पर नियंत्रण बनाना चाहती है। दयामनी को उम्मीदवार बनाने को लेकर भी प्रदेश से लेकर केंद्रीय नेतृत्व तक कई स्तरों पर बहस हुई।
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