Ranchi News: अधिक मात्रा में अवैध रूप से बालू बेचने से राज्य में हुई बालू की कमी
Ranchi: राज्य भर में बालू की भारी किल्लत हुई है, राजधानी रांची भी शामिल है। रांची में एक हाइवा 10 हजार रुपये में मिलता है, लेकिन ब्लैक बालू 40 हजार रुपये में मिलता है। वहीं, अब प्रति टर्बो बालू की कीमत 6500 से 7500 रुपये हो गई है, जो पहले तीन हजार रुपये थी। वह भी कठिन परिस्थितियों के बाद मिलता है। कारण यह है कि रांची में स्थित 19 बालू घाटों में से कोई भी चालू नहीं है। राज्य में केवल 21 बालू घाट कार्यरत हैं। रांची में चालान होने पर ही बालू रामगढ़, हजारीबाग, लोहरदगा, गुमला और सिमडेगा से मंगाया जा रहा है। कई लोग चोरी-छिपे बालू लाते हैं, इसलिए इसकी कालाबाजारी हो गई है।
Black में बालू मिलने के कारण आम लोग भी घरों में सामान्य निर्माण कार्य करने से बच रहे हैं। दूसरी ओर कर्मचारी भी काम नहीं कर रहे हैं। इसलिए बहुत से कर्मचारी भाग रहे हैं। राज्य में निर्माण क्षेत्र में लगभग आठ लाख लोग काम करते हैं। इनमें से एक लाख लोग राजधानी रांची और आसपास के क्षेत्रों में काम करते हैं। इन कर्मचारियों को अब रोजगार का संकट है। बहुत से कर्मचारी देश छोड़ने लगे हैं।
झारखंड बालू ट्रक एसोसिएशन के अध्यक्ष दिलीप साव ने कहा कि एक राज्य में जहां हर 10 से 15 किमी पर एक नदी है, वहाँ के लोग एक मुट्ठी बालू के लिए तरस रहे हैं। ट्रक चालक नौकरी छोड़ रहे हैं।निर्माण क्षेत्र में काम करने वाले लोग अब पड़ोसी राज्यों में नौकरी की तलाश कर रहे हैं। राज्य में बालू का मुद्दा उलझाया जा रहा है, ताकि दरें बढ़ें और लोगों को ब्लैक में खरीदने को मजबूर किया जा सके. यह एक साजिश है।
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444 बालू नहरों में से सिर्फ 21 ही नीलम होना बाकि है
राज्य सरकार ने JSMDC के माध्यम से हाल में 444 बालू घाटों में से 351 की नीलामी की थी। इनमें 216 घाटों की नीलामी पूरी हुई। वहीं, 135 घाटों की निविदा जारी है। पूर्व से राज्य भर में केवल 21 बालू घाट बंद हो चुके हैं। इन्हीं घाटों से बालू का उठाव वैध रूप से हो रहा है। शेष सभी घाटों से बालू अवैध रूप से उठाया जा रहा है। दूसरी ओर, अवैध बालू ढुलाई को रोका जा रहा है। इस समय राज्य में 1200 बालू ट्रक पकड़े गए हैं। यह भी बालू दर की एक वजह है।
बालू की कमी से हजारों मजदूरों को नहीं मिल पा रहा काम
राजधानी में बालू की किल्लत ने कई रोजगार संकट पैदा कर दिए हैं। काम के अभाव में हर दिन हजारों कर्मचारी घर लौट रहे हैं। इसमें मिस्त्री सहित पुरुष और महिला कर्मचारी काम करते हैं। पिछले कुछ महीनों से यहां बालू की अनिश्चितता बनी हुई है। इसलिए कर्मचारी हर दिन परेशान हैं। बिरसा चौक में काम करने आए विकास उरांव ने बताया कि पिछले अक्टूबर से नवंबर तक बालू की किल्लत जारी रही है। बीच-बीच में बालू आने से कुछ दिनों तक काम मिला, लेकिन उसके बाद से लगातार बैठा-बैठा है।
उनका कहना था कि सरकार को यह समझ में नहीं आ रहा है कि बालू की किल्लत को कब खत्म किया जाएगा। लालपुर चौक पर राजमिस्त्री मनोज साहू ने बताया कि काम ठप हो गया है। बाजार में काम कभी-कभी मिलता है, कभी-कभी नहीं मिलता। इसलिए निराश होकर घर लौटना पड़ा। यह स्थिति कितने दिनों तक रहेगी पता नहीं।
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216 घाटों का टेंडर पूरा हो गया है और माइंस डेवलपर ऑपरेटर (एमडीओ) चुना गया है। इन्हें लेटर ऑफ इंटेंट (LOI) मिल गया है। इसके बावजूद बालू निकालने का समय लगेगा। इसकी वजह यह है कि बालू घाटों का टेंडर करने के बाद माइनिंग प्लान, इनवायरमेंटल क्लीयरेंस (IC) और कंसेट टू ऑपरेट की आवश्यकता होती है। इसके लिए राज्य इनवायरमेंट इंपैक्ट असेसमेंट अथॉरिटी (सिया) से अनुरोध करना होगा।
फिर सिया टीम इसकी समीक्षा करके इसे स्वीकार करती है। सिया राज्य में नवंबर से ही नहीं है। उसकी पदाधिकारियों की अवधि समाप्त हो गई है। बालू घाटों को इसी मिलेगा जब तक सिया नहीं बन जाता। इसी के घाटों से बालू निकालने की अनुमति नहीं है। इन सभी प्रक्रियाओं को पूरा करने में कम से कम 6 से 8 महीने लगेंगे। यानी तब तक बालू रहेंगे।
JSMDT की वेबसाइट पर 7.50 प्रति CFT ही बताया गया है
JSMDC की वेबसाइट पर बालू प्रति CFT 7.50 रुपये का है। इसके लिए वाहनों को स्वयं व्यवस्था करनी होगी। इसलिए वेबसाइट का उपयोग बहुत कम लोग करते हैं। दूसरी ओर, विभाग ने सैंड टैक्सी योजना का प्रस्ताव किया है। यह अभी प्रस्ताव के स्तर पर है, लेकिन इसके तहत घर तक बालू पहुंचाया जाएगा।
वर्तमान बाजार में, आप एक कर्मचारी लेना चाहते हैं तो 10 कर्मचारी चाहिए। सभी को काम पर ले जाने की जिद दिखती है। राजमिस्त्री भी इसी तरह है। वहीं, महिला कर्मचारियों को भी काम मिलना बहुत मुश्किल हो रहा है। बालू की कमी अन्य निर्माण कार्यों पर भी असर डाल रही है। क्योंकि लोग दूसरे कामों में नहीं लगते जब तक निर्माण कार्य पूरा नहीं हो जाता। इससे दूसरे काम करने वाले कर्मचारी भी प्रभावित हो रहे हैं।
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रोज-रोज देश छोड़कर बाहर कमाने जा रहे लोग
रोजाना हजारों कर्मचारी बालू की कमी के कारण पलायन कर रहे हैं। यहां से काम करने वाले लोग दिल्ली, कोलकाता, बेंगलुरु, चेन्नई और केरल सहित आसानी से काम मिलने वाले अन्य स्थानों पर जा रहे हैं। रांची और हटिया से चलने वाली ट्रेनों में कामगारों की भीड़ देखने को मिलेगी। वहीं बहुत से कामगारों को जहाजों से ले जाया जाता है।
राजधानी में कई स्थानों पर मजदूरों का बाजार दिखाई देता है। यह स्थानों में शामिल हैं: लालपुर चौक, कोकर डिस्टिलरी पुल, बूटी मोड़, मोरहाबादी, रातू रोड, हरमू रोड, किशोरगंज चौक के निकट, हरमू बिजली ऑफिस के निकट, हरमू बाजार, बिरसा चौक, डोरंडा बाजार, हटिया, धुर्वा, नामकुम सदाबहार चौक, कांटाटोली चौक और चर्च रोड।
बालू की कीमत को देखते हुए आंदोलन करने की सोच रहे लोग
राची राजधानी में बालू की किल्लत लोगों को परेशान करती है। बालू 20-21 हजार रुपये प्रति हाइवा मिलता है, जबकि 40-50 हजार रुपये प्रति हाइवा मिलता है। शहर में सड़कों और नालियों का निर्माण करा रहे संवेदक भी बालू की बढ़ती कीमत से परेशान हैं। दोगुने से अधिक कीमत पर बालू मिलने के कारण संवेदक अब काम नहीं करेंगे और निगम भवन के सामने धरना देंगे।
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220 परियोजनाओं पर किया जा रहा है काम
फिलहाल, रांची नगर निगम क्षेत्र में 220 से अधिक परियोजनाओं पर काम चल रहा है। इनमें से अधिकांश सड़कें, नाले और कल्वर्ट हैं। इसके अलावा, प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत कई वार्डों में घर भी बनाए जा रहे हैं। वहीं, काम कर रहे संवेदकों का कहना है कि बालू की कीमत बढ़ने से लगता है कि जेब से पैसा निकालना पड़ेगा। संवेदकों का मानना है कि हमें मजबूरी में काम बंद करना पड़ेगा अगर सरकार इस मामले पर गंभीर नहीं हुई।
बालू की किल्लत से नगर निगम के सभी संवेदक भयभीत हैं। संवेदकों को दोगुने दर से बालू खरीदकर काम करना मुश्किल हो गया है। इसलिए हम सरकार से मांग करते हैं कि आम लोगों को बालू उचित दर पर मिलेगा। अन्यथा हम कामकाज बंद कर निगम भवन के सामने धरना देने को मजबूर होंगे।
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