यहां किसान काजू को टोकरियों में भरकर हाट-बाजार में बेचते हैं,
झारखंड का जामताड़ा साइबर ठग के लिए जाना जाता है, लेकिन अब यह काजू से बदला जाएगा। यहां काजू की खेती के लिए अच्छी मिट्टी है, लेकिन यहां के किसानों को उम्मीदवार बाजार नहीं मिल रहा है। हालाँकि, सरकार की ओर से अब प्रोसेसिंग यूनिट लगाने की कोशिश की जा रही है। अब किसानों को उनकी मेहनत का फल मिलेगा, ऐसा लगता है।
जामताड़ा पहले साइबर ठगी के लिए जाना जाता था, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से देश भर में सस्ते काजू के लिए भी जाना जाता है। लेकिन यहां के किसानों को अपेक्षित बाजार और खरीदार नहीं मिले। इसके अलावा, यहां कोई प्रोसेसिंग प्लांट नहीं है। नतीजतन, लोगों को काजू को टोकरियों में भरकर स्थानीय हाट-बाजार में कौड़ी के मूल्य पर बेचना पड़ता है। इन किसानों के दिन अब खत्म होने वाले हैं।
जामताड़ा की मिट्टी में खूब फलते हैं काजू
13 दिसंबर को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इसका संकेत दिया जब वे यहां पहुंचे। उनका कहना था कि सरकार इसकी खेती को व्यावसायीकरण करने की कोशिश करेगी। प्रोसेसिंग यूनिट का निर्माण शुरू हो गया है। 1990 के आसपास का समय है।
वन विभाग ने निर्धारित किया कि यहां की मिट्टी काजू के लिए अनुकूल है। विभाग ने पौधे बोए। ये पेड़ बन गए और काजू उत्पादन करने लगे। 2011–12 में उपायुक्त केएन झा के कार्यकाल में बागान लगाने की प्रक्रिया तेज हो गई। किसानों की रुचि बढ़ी है। वर्तमान में 100 एकड़ से अधिक जमीन पर काजू के बगान हैं।
सरकारी सुविधाओं से वंचित किसान
यह नाला प्रखंड के कुंडहित, मलंचा पहाड़ी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में व्याप्त है। लेकिन सरकारी जमीन पर मौजूद बगानों को अब तक व्यवस्थित नहीं किया गया है, इसलिए ग्रामीणों को प्रोसेसिंग प्लांट की कमी से लाभ नहीं मिल रहा है। यह भी सरकारी सुविधा से वंचित हैं।
किसान इसलिए 30 से 40 रुपये प्रति किलो बेचते हैं। बंगाल के बहुत से व्यापारी इसका लाभ उठाते हैं। वे यहां से कम दर पर खरीदते हैं और फिर उच्च मूल्य पर बेचते हैं। सरकार इस ओर ध्यान देती है।
आप भी काजू और अन्य फलों की खेती करने के लिए स्थानीय सरकारी जमीन को पट्टे पर ले सकते हैं। मनरेगा योजना भी पौधों की देखभाल के लिए मजदूरी प्रदान करेगी जब तक वे फलदार नहीं हो जाते।
वन विभाग भी बागों का विस्तार करेगा
जामताड़ा वन विभाग ने इस वर्ष मानसून से पहले लगभग डेढ़ लाख पौधे लगाए हैं। 15 हजार काजू के पौधे इनमें हैं। यहां की उपयुक्त मिट्टी को देखते हुए, विभाग ने फैसला किया कि हर वर्ष जितने भी पौधे लगाए जाएंगे, उनमें 10 प्रतिशक काजू होंगे।